International Relations:- Meaning, Evolution, Nature & Scope | अंतर्राष्ट्रीय संबंध:- अर्थ, विकास, प्रकृति और क्षेत्र

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Introduction (परिचय):-

अंतरराष्ट्रीय संबंध विषय का अध्ययन करने से पहले हमें अन्तरराष्ट्रीय राजनीति का अध्ययन करना भी आवश्यक हैं। अगर अंतरराष्ट्रीय राजनीति एक परंपरागत व्यापक अवधारणा है तो अंतरराष्ट्रीय संबंध एक समकालीन व्यापक अवधारणा हैं।   
अंतरराष्ट्रीय संबंध 1919 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन में सबसे कम समय में उभरने वाले सामाजिक विज्ञान विषयों में से एक हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंध विषय का इतिहास सबसे पहले वेलज विश्वविद्यालय (University of Wales) में अन्तर्राष्ट्रीय वूड्रो विल्सन पीठ की स्थापना से शुरू होता हैं।
अंतरराष्ट्रीय संबंध का विकास राष्ट्र राज्यों का विकास के साथ शुरू होता हैं। मध्य युग तक राष्ट्र राज्यों का अस्तित्व ही नहीं था जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय संबंधों की स्थापना की संभव नहीं थीं।
वैसे तो अंतरराष्ट्रीय संबंधों की जड़े हमें "The History of the Peloponnesian War"(Thucydides) से ही देखने को मिलती है। किंतु अंतरराष्ट्रीय संबंधों का इतिहास राष्ट्र राज्यों के विकास के साथ ही शुरू होता हैं। 1648 की वैस्टफेलिया की संधि के बाद से आधुनिक राष्ट्र-राज्य उभरे और अध्ययन क्षेत्र के रूप में अंतरराष्ट्रीय संबंध एक विषय के रूप में उभरा। यूरोप में चले रहे युद्ध (1618-1648) को समाप्त किया और इस संधि के बाद स्विट्जरलैंड और नीदरलैंड का निर्माण हुआ। और इस संधि के बाद यूरोप में रोमन कैथोलिक चर्च की सत्ता को नागरिकों द्वारा अस्वीकार कर दिया गया।
वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय संबंधों का विषय क्षेत्र दिन-प्रतिदिन विस्तृत होता जा रहा हैं। प्रत्येक दिन विश्व में अनेक राज्यों के मध्य जो संधि और समझौते होते है उनको हम अंतरराष्ट्रीय संबंधों में ही शामिल हो सकते हैं।

अंतरराष्ट्रीय संबंधो का अर्थ:-

अंतरराष्ट्रीय संबंध, दो या दो से अधिक संप्रभु राष्ट्रों के मध्य अपने राष्ट्रीय हितों (राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक) को ध्यान में रखते हुए संबंध स्थापित करना। अंतरराष्ट्रीय संबंध किसी भी राष्ट्र की संपन्नता और सुरक्षा को लेकर अंतरराष्ट्रीय संबंध महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंध को कभी-कभी 'अन्तरराष्ट्रीय अध्ययन' (International Studies) के रूप में भी जोड़कर देखा जाता है, हालाँकि दोनों शब्द को पूरी तरह से जोड़ना उचित नहीं हैं।


अंतरराष्ट्रीय संबंधो की परिभाषा:-

हेंस जे. मारगेन्थाऊ - "अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति शक्ति के लिए संघर्ष है।"
क्विंसी राइट - "अंतरराष्ट्रीय संबंध केवल राज्यों के संबंधों को ही नियमित नहीं करता अपितु इसमें विभिन्न प्रकार के समूहों जैसे राष्ट्र, राज्य, लोग, गठबंधन, क्षेत्र, परिसंघ, अंतरराष्ट्रीय संगठन, औद्योगिक संगठन, धार्मिक संगठन आदि के अध्ययनों को भी शामिल करना होगा।"

Evolution of IR (अंतरराष्ट्रीय संबंधों का विकास):-

अंतरराष्ट्रीय संबंधों का विकास कई चरणों से गुजरा हैं-
पूर्व वैस्टफैलिया की संधि, प्रथम विश्व युद्ध की अवधि, शीत युद्ध की अवधि, शीत युद्ध के बाद की अवधि।


ऐतिहासिक पृष्टभूमि (Hisotrical Background):-

अंतरराष्ट्रीय संबंध यूनानी नगर ग्रीक के थूसिडाइड्स (Thucydides, The Greek Historian) के काम से शुरू होते हैं, जो "The History of the Peloponnesian War" नामक पुस्तक से प्रसिद्ध हैं। ग्रीक नगर-राज्य आपस में टकराव की समस्या से जूझ रहे थे जिनमें केवल शक्ति और शक्तिशाली के लिए संघर्ष चल रहा था इसी शक्ति संघर्ष के कारण रोमन साम्राज्य इन नगर-राज्यों  ऊपर हावी हो गया था। बैरी बुजान और रिचर्ड लिटिल के अनुसार 3500 ई. पूर्व में शुरू होने वाले प्राचीन सुमेरियन शहर राज्यों की बातचीत को पूरी तरह से विकसित अंतरराष्ट्रीय प्रणाली के रूप में माना जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय संबंध का एक विषय के रूप में निर्माण करने के लिए प्राचीन भारत के अंतर राज्य संबंधों पर विचार-विमर्श किया गया था क्योंकि कौटिल्य का अर्थशास्त्र अंतर राज्यों की संबंधों के संचालन का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ था। इसके बाद 16वीं शताब्दी में मैकियावेली द्वारा 1513 में लिखी गई पुस्तक "द प्रिंस" में उन्होंने राजनीति, संधि और कूटनीति के बारे में बताया जिनके द्वारा एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के साथ संधि स्थापित कर अंतरराष्ट्रीय संबंधों की शुरुआत कर सकता है।


वेस्टफेलिया संधि से प्रथम विश्व युद्ध तक :-

राज्य प्रणाली ने अपना आधुनिक रूप 1648 से लिया जब वेस्टफेलिया की संधि संपन्न हुई। 1648 तक इंग्लैंड, फ्रांस और स्पेन पहले से राष्ट्र राज्य के रूप में विकसित हो चुके थे। छोटी शक्तियों में डेनमार्क, हॉलैंड, पुर्तगाल और स्विजरलैंड आदि आते थे। पवित्र रोमन साम्राज्य गैर कार्यशील हो चुके थे। लौकिक संप्रभुता के लिए पोप का दावा अतीत की बात हो गई थी। वेस्टफेलिया की संधि के बाद विश्व में औद्योगिक क्रांति, प्रतिनिधि सरकार, अंतरराष्ट्रीय संगठनों की वृद्धि, आत्मनिर्भरता में वृद्धि, संचार के साधनों में क्रांति के साथ-साथ परमाणु हथियारों का भी आगमन हुआ। 1648 की वेस्टफेलिया संधि से 1713 की उट्रेच की संधि तक विश्व में इंग्लैंड ने एक संतुलनकर्ता करता की भूमिका निभाई। 1789 में फ्रांसीसी क्रांति ने कुलीन वर्ग की बजाय राज्य के नागरिकों को संप्रभु के रूप में परिभाषित किया। इस काल अध्ययन करने से हम कह सकते हैं कि 1648 से 1919 तक का संपूर्ण काल मात्र "कूटनीति का इतिहास" है। जिसमें सभी राष्ट्र कूटनीतिक संबंध बनाकर अपनी स्थिति मजबूत करते थे।इस काल में अंतरराष्ट्रीय अध्ययन भी मात्र कूटनीतिक संबंधों के दायरे तक सीमित था। इस के निम्न कारण थे:-
पहला, प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व युद्ध ज्यादा भीषण और भयंकर नहीं होती थे। दूसरा, विद्वानों का मानना था कि युद्ध और संधि एक प्राकृतिक घटना है इसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। तीसरा, संचार सुविधाओं की कमी के कारण अनेक गतिविधियां कुछ राज्यों तक सीमित थी। इस काल में ना ही राजनीति के अंतरराष्ट्रीय स्तर का निर्माण हुआ था।परंतु 1919 में वेल्स यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग में अंतरराष्ट्रीय संबंध का एक विषय के रूप में पठन-पाठन शुरू हुआ था।


प्रथम विश्व युद्ध से द्वितीय विश्व युद्ध तक (1919-1939):-

प्रथम विश्व युद्ध का अंत होने के बाद विश्व के विद्वानों में एक मुद्दा अन्तरराष्ट्रीय मंच पर सामने आया कि "युद्ध क्यों होते हैं, इन्हें कैसे रोका जाए।" जिसका विद्वानों ने मिलकर समाधान निकाला की अच्छी की नीति-निर्माण से युद्धों को रोका जा सकता है किंतु इस नीति-निर्माण को विद्वानों का केवल कल्पनालोक कहा जा सकता है क्योंकि अच्छी नीति-निर्माण को पूरे विश्व में लागू करना असंभव था। इस काल में अंतरराष्ट्रीय संबंध के अध्ययन क्षेत्र में ज्यादा विकास नहीं हुआ किंतु इस काल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक संगठन का उदय हुआ था इसका नाम लीग ऑफ नेशन(राष्ट्र संघ) था जिसकी स्थापना Woodrow Wilson के प्रयासों से हुई थी। किंतु यह संगठन सफल नहीं हो पाया था। इस काल में आई 1929 की आर्थिक महामंदी और 1933 में हिटलर के उदय घरेलू और विदेशी नीतियों के बीच कठोर अंतर को तोड़ते हुए अंतरराष्ट्रीय संबंधों को एक नया मोड़ दिया


द्वितीय विश्व युद्ध का काल (1939-1945):-

द्वितीय विश्व युद्ध के इस काल को राजनीतिक सुधारवाद का युग भी कहा जाता है। इस युग में राष्ट्रों के मध्य अनेक विषयों पर संबंध बनने शुरू हो गए थे, जिनके कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति स्थापना के प्रयास किए गए थे। शांति स्थापना के लिए सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इसमें सबसे ज्यादा लीग ऑफ नेशन की भूमिका थी।
इस काल की अंतरराष्ट्रीय राजनीति में दो विचार सामने आए- पहला, युद्धों को कैसे रोका जाए और दूसरा, विश्व में शांति कैसे स्थापित की जाए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभरने वाले राष्ट्रों की शक्ति को दबाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का सहारा लिया जाने लगा था किंतु यह संगठन भी असफल हो गए थे, इसका एक अच्छा उदाहरण है- 1931 में जापान द्वारा चीन के मंचूरिया पर आक्रमण और उसके बाद लीग ऑफ नेशन की सदस्यता छोड़ना। इसी काल के अंत में दो राष्ट्र महाशक्ति के रूप में उभरकर सामने आए। इस काल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति स्थापना को लेकर काले बादल मंडराते रहे।


शीत युद्ध का काल (1945-1991):-

1946 में हंस मोर्गेंथाऊ की पुस्तक "राष्ट्रों के मध्य राजनीति"(Politics amoung nation) से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में यथार्थवाद का प्रवेश हुआ। यह पुस्तक अंतरराष्ट्रीय संबंधों की बाईबल भी कहीं जाती है। इस दौर में युद्ध को रोकने के बजाय "युद्ध क्यों होते हैं" इसका अध्ययन किया जाने लगा। इस दौर में उभरे नए सिद्धांतों ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों के वातावरण को पूरी तरह बदल कर रख दिया था। इस युग में यथार्थवाद, नव-यथार्थवाद, नव-उपनिवेशवाद, Check & Balance सिद्धांत, खेल सिद्धांत, निर्भरता सिद्धांत, विश्व व्यवस्था सिद्धांत आदि का निर्माण हुआ।
किंतु इस काल में यथार्थवाद का वर्चस्व रहा। यथार्थवाद के अनुसार राज्य सदा अपने हितों की पूर्ति के लिए संघर्ष करते हैं। इसी दृष्टिकोण से राष्ट्रों के अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार का अध्ययन भी किया जाने लगा। इस युग में यथार्थवाद के साथ-साथ विश्व व्यवस्था सिद्धांत का भी आगमन हुआ जिसकी मुख्य विशेषताएं थी:-
  1. पहली, विदेश नीति को प्रभावित करने वाले कारको का अध्ययन करना।
  2. दूसरा, विदेश नीति की संचालन की पद्धतियों का अध्ययन करना।
  3. तीसरा, अंतरराष्ट्रीय समस्याओं और विवादों के समाधान का अध्ययन किया जाना चाहिए।

शीत युद्ध के अंत से अब तक (1991-2021):-

1990 में शीत युद्ध के अंत का दौर शुरू हो गया था, किंतु 1991 में संपूर्ण रुप से शीतयुद्ध की समाप्ति हुई और अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति के रूप में उभर कर सामने आया। अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय दोनों ही स्तरों पर LPG (Liberalisation, Privatization, Globalisation) को अपनाया गया, जिसके परिणामस्वरूप संपूर्ण विश्व एक "वैश्विक गांव" के रूप में उभरा। इसी कारण इस युग को वैश्वीकरण का नाम दिया गया इस समय में मानव व मानव-जाति से संबंधित अनेक मुद्दे उभर कर सामने आए जैसे:- आतंकवाद, नशा, मानवाधिकारों का उल्लंघन आदि इन सभी मुद्दों का समाधान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया गया। सन् 2000 के उत्तर आधुनिक युग में नारीवाद, वातावरणवाद, मानववाद व बहु-सांस्कृतिक मुद्दे ऊपर कर सामने आने लगे और अंतरराष्ट्रीय राजनीति का आधार बन गए। वर्तमान में कोविड-19 महामारी के काल में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह परण उभर कर सामने आया कि "क्या राज्यों के पास सैनिक और परमाणु हथियारों जरूरी है या दवाईयां?"

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की प्रकृति(Nature of IR):-

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की प्रकृति गतिशील है। अंतर्राष्ट्रीय संबंध विश्व राजनीति में क्या हो रहा है, इसका गहन विश्लेषण है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की अवधि ने विश्व राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखा। विश्व राजनीति को दो ध्रुवों में विभाजित किया गया था, जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में नाटो और यूएसएसआर के नेतृत्व में वारसॉ संधि। 1990 के दशक में सोवियत संघ के पतन ने विश्व राजनीति में एक प्रकार की एकल ध्रुवता को जन्म दिया। हालाँकि, आर्थिक रूप से विकसित एशियाई देश जैसे चीन, भारत, सिंगापुर, वियतनाम और विभिन्न दक्षिण अमेरिकी देश जैसे ब्राजील, सभी विश्व राजनीति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर रहे हैं। तो यह स्पष्ट है कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति फिर से बहुध्रुवीय की ओर बढ़ रही है। फिर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में एनजीओ (गैर-सरकारी संगठन), एमएनसी (बहुराष्ट्रीय कंपनियों) आदि जैसे गैर-राज्य अभिनेताओं के बढ़ते महत्व पर भी चर्चा की जाती है। फिर भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों की प्रकृति को जानने के लिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं:-

राज्य प्रमुख अभिनेता के रूप में:-

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में राज्य एकमात्र और एकात्मक कर्ता है। राज्य हमेशा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक प्रमुख खिलाड़ी रहा है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक प्रमुख प्रेरक शक्ति के रूप में राज्य के व्यवहार का अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भी अध्ययन किया जाता है।


राष्ट्रीय हित और शक्ति:-

राष्ट्रीय हितों की रक्षा राज्य का मुख्य लक्ष्य है। इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, राज्य अन्य राज्यों के साथ संबंध स्थापित करता है और राज्य की राष्ट्रीय शक्ति अपने राष्ट्रीय हितों को संतुष्ट करने में सक्षम होगी।


सत्ता के लिए संघर्ष:-

मोर्गेंथाऊ के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति सत्ता के लिए संघर्ष है। मैं पहले ही कह चुका हूं कि सत्ता राष्ट्रहित का साधन है। इसलिए सत्ता की राजनीति भारतीय रेल का प्रमुख विषय है।


राष्ट्र राज्यों के बीच निरंतर संपर्क:-

वर्तमान विश्व में कोई भी राज्य आत्मनिर्भर नहीं है। हर राज्य एक दूसरे पर निर्भर है। इसलिए अंतर्संबंध की आवश्यकता है और यह केवल विभिन्न राज्यों के बीच परस्पर क्रिया के कारण ही संभव है।अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभिन्न राज्यों की विदेश नीतियों और वे एक दूसरे के साथ कैसे व्यवहार करते हैं, इस पर भी चर्चा करते हैं।

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